श्री राधा-कृष्ण पौराणिक कथाएं
सतयुग और त्रेता युग बीतने के बाद जब द्वापर युग आया तो पृथ्वी पर झूठ, अन्याय, असत्य, अनाचार और अत्याचार होने लगे और फिर प्रतिदिन उनकी अधिकता में वृद्धि होती चली गई| अधर्म के भार से पृथ्वी दुखित हो उठी| उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास पहुंचकर प्रार्थना की कि वे उसे इस असहनीय भार से मुक्त करें|
लेकिन वे तीनों ही पृथ्वी को इस भार से मुक्त करने में असमर्थ थे| कोई उपाय न देखकर विष्णु ने कहा "चलिए, हम लोग भगवान के पास चलें| वही हमें कोई उपाय बता सकेंगे|"
विष्णु लक्ष्मी, ब्रह्मा और शिव के साथ गोलोक में पहुंचे तो उन्होंने परब्रह्म परमेश्वर को कृष्ण के रूप में और उनकी माया को राधा के रूप में देखा| गोलोक के वृंदावन नामक सुंदर और सुरम्य वन में एक सुंदर आश्रम था| उसी के निकट एक नदी बह रही थी|
विष्णु ने परब्रह्म परमेश्वर को पृथ्वी के दुख की गाथा सुनाई तो उन्होंने कहा, "मैं पृथ्वी के दुख से परिचित हूं| पृथ्वी को भारमुक्त करने के लिए शीघ्र ही मैं ब्रज में कृष्ण के रूप में अवतार लेने वाला हूं| मैं वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा| और क्योंकि मैं अपनी माया से और मेरी माया मुझसे पृथक नहीं रह सकती इसलिए मेरी माया राधा के रूप में बरसाने में वृषभानु गोप के घर में जन्म लेगी| और उसके बाद मैं पृथ्वी को इस भार से मुक्ति दिलाने का प्रयास करूंगा| क्योंकि एक-एक पापी का वध करना कठिन है| इसलिए मैं ऐसा उपाय करूंगा कि संसार के समस्त पापी स्वयं ही लड़-भिड़ कर पृथ्वी को भार हीन बना दें| आप लोग निश्चिंत होकर अपने-अपने को पधारिए और मेरे आदेशों को प्रतीक्षा कीजिए|
विष्णु आदि देवताओं ने परमेश्वर को प्रणाम किया और अपने-अपने लोक में आकर परमपिता के आदेश की प्रतीक्षा करने लगे|
कुछ समय बाद ही अत्याचारी और अनाचारी मथुरा नरेश कंस के कारागार में बंदी वासुदेव की पत्नी देवकी ने एक बालक को जन्म दिया| बालक के रूप में जन्म लेने से पूर्व ही भगवान ने उन्हें अपनी योजना बताते हुए आदेश दिया था कि वासुदेव जी उन्हें गोकुल में नंदगोप की पत्नी यशोदा के पास छोड़ आएं और उसी समय उनके गर्भ से जन्म लेने वाली कन्या को लाकर कंस के हवाले कर दें| वह कन्या मेरी योगमाया है|
वासुदेवने ऐसा ही किया और कृष्ण गोकुल में नंद गोप की पत्नी यशोदा की गोद में पलने लगे| उसी समय उनकी माया ने भी राधा के रूप में बरसाने के वृषभानु गोप की पत्नी के गर्भ से जन्म लिया जिसका नाम माता-पिता ने बड़े चाव से राधा रख दिया|
दो अलग-अलग गांवों में रहते हुए भी राधा और कृष्ण बचपन से ही एक दूसरे को चाहने लगे थे| वन में गाएं चराते हुए अक्सर राधा से कृष्ण की भेंट हो जाया करती थी| फिर जब वे दोनों बड़े हो गए तो जब भी रात की बेला में कृष्ण अपनी बांसुरी के स्वरों द्वारा अपनी प्रियतमा राधा को पुकारते राधा अपनी सहेली गोपबालाओं के साथ कृष्ण के पास पहुंच जाती| राधा और कृष्ण का यह प्रेम दो किशोर लड़के-लड़की का प्रेम था जो थोड़े से दिनों में ही पुरे ब्रज में चर्चित हो गया|
नंद बाबा और यशोदा ने चाहा कि कृष्ण का विवाह राधा के साथ कर दिया जाए| उधर बरसाने में वृषभानु और उनकी पत्नी कलावती की भी यही इच्छा थी|
एक शुभ दिन देखकर राधा और कृष्ण की सगाई कर दी गई| पूरा ब्रज प्रदेश आनंदोल्लास भरे उत्सवों से भर गया| लेकिन उन दोनों का विवाह नहीं हो पाया था कि कंस के आदेश पर अक्रूर कृष्ण को बुलाने के लिए मथुरा से वृंदावन पहुंच गए और अत्याचारी कंस तथा राक्षसी स्वभाव वाले उसके अनुचरों का वध करने के लिए कृष्ण को बलराम के साथ वृंदावन छोड़कर मथुरा जाना पड़ा और मथुरा में कंस आदि का वध करने के बाद मथुरा राज्य की सुरक्षा के उत्तरदायित्व ने कृष्ण को इतना उलझा दिया कि वह चाह कर भी वृंदावन नहीं जा सके| अपने जामाता कंस के वध का बदला लेने के लिए उसके ससुर जरासंध ने अपनी विशाल सेना के साथ मथुरा को घेर लिया, लेकिन कृष्ण और बलराम ने अपने पराक्रम से जरासंध और उसकी विशाल सेना को पीठ दिखाकर भागने पर विवश कर दिया|
लेकिन जरासंध पराजित होकर भी शान्त नहीं बैठा| उसके कई बार मथुरा पर आक्रमण किए| मथुरा एक छोटा-सा राज्य था और मथुरा नगर को सुरक्षित स्थान पर नहीं बसाया गया था| अत:कृष्ण ने मथुरा छोड़कर अन्य कहीं जाने का निश्चय कर लिया और जरासंध की विशाल सेना के बीच से मथुरावासियों को सुरक्षित निकालकर हजारों योजन दूर भारतवर्ष के पश्चिमी सागर तट पर ले गए और द्वारका नगर की स्थापना करके एक शक्तिशाली यादव राज्य स्थापित कर दिया|
अक्रर के साथ मथुरा छोड़कर आने के बाद कृष्ण और राधा का मिलन फिर कभी नहीं हुआ| लेकिन वे आजीवन एक दूसरे को भूल नहीं पाए| वैभव संपन्न द्वारका में अनेक सुदंर पत्नियों का प्यार पाकर भी वह राधा के प्यार को नहीं भूल पाए|
और संसार आज भी राधा-कृष्ण के प्रेम को एक आदर्श प्रेम के महान तथा अमर प्रतीक के रूप में याद करता है| उनकी मूर्तियां भारत के मंदिरों में ही नहीं विदेशों में भी अनेक मंदिरों में प्रतिष्ठित हैं, और लोग बड़े भक्ति भाव से उनकी पूजा-आराधना करते हैं|
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