शेर और मच्छर की कहानी

  शेर और मच्छर की कहानी

जंगल के राजा शेर को अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था. वह स्वयं को सबसे शक्तिमान समझता था. इसलिए, जंगल के हर जानवरों पर अपनी धौंस जमाता रहता था. जंगल के जानवर भी क्या करते? अपने प्राण सबको प्रिय थे. इसलिए, न चाहकर भी शेर के सामने नतमस्तक हो जाते. एक दिन दोपहर के समय शेर एक पेड़ के नीचे सो रहा था. वहीं एक मच्छर भिनभिना रहा था, जिससे शेर की नींद में खलल पड़ रहा था. वह एक मच्छर से बोला, “ए मच्छर, देखता नहीं मैं सो रहा हूँ. भाग यहाँ से, नहीं तो मसल कर रख दूंगा.” मच्छर बोला, “क्षमा करें वनराज, मेरे कारण आपकी नींद में व्यवधान उत्पन्न हुआ. किंतु, आप मुझे ये बात नम्रता से भी कह सकते हैं. आखिर, मैं भी इस धरती का जीव हूँ.” “अच्छा, तो तू छोटा सा मच्छर मुझसे जुबान लड़ाएगा. और क्या ग़ल कहा मैंने? तुम मच्छर हो ही ऐसे कि कोई भी तुम्हें यूं मसल दें. मैं तो ये बार-बार कहूंगा. क्या बिगाड़ लोगे तुम मेरा?” मच्छर को शेर की बात और व्यवहार बहुत बुरा लगा. वह अपने साथी मच्छरों के पास गया और उन्हें सारी बताई. सभी मच्छरों को शेर की बात चुभ गई. उन्होंने तय किया कि इस संबंध में एक बार सब मिलकर शेर से बात करेंगे. सभी मच्छर शेर के पास पहुँचे और बोले, “वनराज, हमें आपसे बात करनी है.” “जल्दी बोलो, मुझे तुम जैसों से बात करने की फ़ुर्सत नहीं है.” शेर बोला. “वनराज, आप होंगे बहुत शक्तिशाली. किंतु, इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि आप अन्य जीवों और प्राणियों का मज़ाक उड़ायें या उन्हें नीचा दिखाएं.” मच्छर बोले.“मैंने जो कहा, सच कहा. मैं सबसे शक्तिशाली हूँ और मुझे कोई हरा नहीं सकता.” घमंड में चूर शेर गरजा. “ऐसा नहीं है. अगर आप शक्तिशाली हैं, तो हममें भी इतना सामर्थ्य है कि आवश्यकता पड़ने पर हम किसी का भी सामना कर सकते हैं और उसे हरा सकते हैं. हम आपको भी हरा सकते हैं.” मच्छर भी चुप न रहे. यह सुनकर शेर हँसते हुए बोला, “तुम लोग मुझे हराओगे? तुम लोगों की इतनी हिम्मत कि मेरे सामने आकर ये बात कहो. मेरी शक्ति का अंदाज़ा नहीं है तुम्हें. अन्यथा, ऐसा कभी नहीं कहते. अभी भी समय है, भाग जाओ यहाँ से, नहीं तो कोई नहीं बचेगा.” शेर के घमंड ने मच्छरों को क्रुद्ध कर दिया. उन्होंने ठान लिया कि इस शेर को मज़ा चखा कर ही रहेंगे. वे सारे एकजुट हुए और शेर पर टूट पड़े. वे जगह-जगह उसे काटने लगे. वह दर्द से कराह उठा. इतने सारे मच्छरों का सामना करना उसके बस के बाहर हो गया. वह दर्द से चीखता हुआ वहाँ से भागा. लेकिन मच्छरों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. वह जहाँ भी जाता, वे भी उसके पीछे जाते और उसे काटते. आखिरकार, शेर को झुकना पड़ा. उसने हार मान ली. वह मच्छरों के सामने गिपड़गिड़ाने लगा, “मुझे बख्श दो. मुझसे गलती हो गई, जो मैंने तुम्हें तुच्छ समझकर तुम्हारा मज़ाक उड़ाया और तुमसे बुरा व्यवहार किया. आज तुमने मेरा घमंड तोड़ दिया है. अब मैं कभी किसी को नीचा नहीं दिखाऊंगा.”

मच्छरों ने शेर को सबक सिखा दिया था. इसलिए उन्होंने उसे काटना बंद कर दिया. वे बोले, “घमंडी का घमंड कभी न कभी अवश्य टूटता है. आज तुम्हारा टूटा है. घमंड करना छोड़ दो, अन्यथा, एक दिन ये तुम्हें ले डूबेगा. और कभी किसी प्राणी को नीचा मत समझो, हर किसी का अपना सामर्थ्य और शक्ति होती है.” शेर तौबा करते हुए वहाँ से भाग गया.

शिक्षा

घमंडी का सिर नीचा,कभी भी किसी को घमंड नही करना चाहिए ।





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