मेंढक और बैल की कहानी

 मेंढक और बैल की कहानी

एक मेंढक अपने तीन बच्चों के साथ जंगल में नदी किनारे रहता था. उन चारों की दुनिया जंगल और नदी तक ही सीमित थी. बाहरी दुनिया से उनका कोई वास्ता नहीं  था.

खाते-पीते बड़े आराम और मज़े से उनका जीवन कट रहा था. मेंढक हृष्ट-पुष्ट था. उसके बच्चों के लिए वह दुनिया का सबसे विशालकाय जीव था. वह रोज़ उन्हें अपनी बहादुरी के किस्से सुनाता और उनकी प्रशंसा पाकर फूला नहीं समाता था.

एक दिन मेंढक (Frog) के तीनों बच्चे घूमते-घूमते जंगल के पास  स्थित एक गाँव में पहुँच गए. वहाँ उनकी दृष्टि एक खेत में चरते हुए बैल पर पड़ी. इतना विशालकाय जीव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. वे कुछ डरे, किंतु उसकी विशाल काया को देखते रहे. तभी बैल (Ox) ने हुंकार भरी और मेंढक के तीनों बच्चे डर के मारे उल्टे पांव भागते हुए अपने घर आ गए.

बच्चों को डरा हुआ देखकर जब मेंढक ने कारण पूछा, तो उन्होंने विस्तारपूर्वक बैल के बारे में बता दिया, “इतना बड़ा जीव हमने आज से पहले कभी नहीं देखा. हमें लगता है दुनिया का सबसे विशालकाय जीव आप नहीं वह है.”

अपने बच्चों की बात सुनकर मेंढक को बुरा लगा. उसने पूछा, “वह जीव दिखने में कैसा था?”

“उसके चार बड़े-बड़े पैर थे. एक लंबी सी पूंछ थी. दो नुकीले सींग थे. शरीर तो इतना बड़ा कि आपका शरीर उसके सामने कुछ भी नहीं.” बच्चे बोले.

यह सुनकर मेंढक के अहंकार को जबरदस्त ठेस पहुँची. उसने जोर के सांस खींची और हवा भरकर अपना शरीर फुला लिया. फिर बच्चों से पूछा, ”क्या वह इतना बड़ा था.”

“नहीं इससे बहुत बड़ा.” बच्चे बोले.

मेंढक ने थोड़ी और हवा भरकर अपना शरीर और फुलाया, “क्या इतना बड़ा? ”नहीं नहीं और बड़ा.”

मेंढक ने जंगल के बाहर कभी कदम ही नहीं रखा था. उसे बैल के आकार का अनुमान ही नहीं था. किंतु उसने मानो ज़िद पकड़ ली थी कि अपने बच्चों के सामने स्वयं को नीचा नहीं दिखाना है.

वह जोर से सांस खींचकर ढेर सारी हवा अपने शरीर में भरने लगा. उसका छोटा सा शरीर गेंद के समान गोल हो गया. किंतु इतने पर भी वह नहीं रुका. उसका शरीर में हवा भरना जारी रहा. उसने इतनी सारी हवा अपने शरीर में भर ली कि उसका शरीर वह संभाल नहीं पाया और फट गया. अपने अहंकार में मेंढक के प्राण पखेरू उड़ गए.


सीख

अहंकार पतन का कारण है. 






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