सारस और केकड़ा की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल के बीचो-बीच एक बहुत ही सुंदर झील था। उस झील में बहुत सारी मछलियाँ और केकड़ा भी रहता था। वह सब बहुत ख़ुशी से मिल-झूलकर रहते थे। लेकिन हर रोज उस झील के किनारे एक सारस आकर मछलियाँ पकड़कर अपना पेट पूजा करता था। जब भी सारस झील किनारे आ पहुँचता तब सारे मछलियों के बीच भागा-दौड़ी शुरू हो जाता था।
ऐसे दिन बीतता गया। धीरे-धीरे सारस बूढ़ा और कमजोर होने लगा। पहले की तरह वह शिकार भी नहीं कर पा रहा था। सारस बहुत दुखी होकर झील किनारे बैठ गया। सारस का यह हाल देखकर झील की मछलियाँ बहुत खुश हुई। सारे मछली सारस के सामने तैरने लगे पर सारस ने उन्हें कुछ नहीं किया सिर्फ बैठा रहा।
ऐसे कुछ और दिन बीत गए। सारस को ऐसे एक जगह बैठा हुआ देखकर केकड़ा सारस के पास आया और पूछा, “भाई, दो-तीन दिन से देख रहा हूँ तुम यहाँ चुपचाप बैठे हो, एक भी मछली नहीं पकड़ा, खाना भी नहीं खाया क्या बात है?” केकड़े की बात सुनकर सारस फुट-फुटकर रोने लगा। सारस ने कहा, “क्या बताएँ दोस्त, मैं बहुत ही दुखी हूँ। कुछ दिन पहले एक ज्योत्षी ने मुझे एक बात बताया कि बहुत ही जल्दी यह झील सूखने वाला है। बिना पानी के तुम सब कैसे जी पाओगे? तुम सब मर जाओगे। तुम लोगों की मुझे बहुत चिंता हो रहा है। इसलिए मैंने खाना-पीना छोड़ दिया।” केकड़े ने कहा, “क्या बोल रहे हो! यह तो बहुत गंभीर और चिंता की बात है। मुझे सबको बताना होगा।”
सारस की बात केकड़े ने झील की सारी मछलियों को बताया। सारी मछलियाँ और केकड़ा मिलकर सारस के पास गए और बोला, “क्या बोल रहे हो झील सुख जाएगा! तब हम सब कहाँ जाएँगे? क्या करेंगे? कोई तो उपाय होगा न बचने का। हम सबने तुमको हमारा दुश्मन समझा पर तुम तो हमारे दोस्त निकले। हम लोगों के चिंता के कारन तुमने खाना-पीना छोड़ दिया। दोस्त, अब तुम ही कोई उपाय बताओ।” सारस ने कहा, “अच्छा लगा सुनकर कि तुम सबने मुझे दोस्त माना है। एक उपाय है, कुछ ही दूर पर एक तालाब है। अगर तुम लोग चाहो तो मैं एक-एक करके तुम लोगों को वहाँ छोड़ सकता हूँ।” सारे मछली मान गए और कहा, “ठीक है, ठीक है।”
तालाब में पहुँचाने के लिए अगले दिन से सारस एक एक मछली को अपने चोंच पर लेकर जाना शुरू किया। ऐसे कुछ दिन बाद केकड़े की बारी आई। सारस केकड़े को लेकर रवाना हुआ। कुछ दूर जाने के बाद केकड़े ने सारस को पूछा, “भाई, यह तालाब और कितना दूर है।” केकड़े की बात सुनकर सारस हँसने लगा और कहने लगा, “तालाब, कैसा तालाब? यहाँ कोई तालाब नहीं है। मैं तो खाने के लिए तुम सबको यहाँ लेकर आ रहा हूँ। इतने दिनों से मछली खा-खा कर बोर हो गया हूँ, आज बहुत मजा आएगा तुमको खा कर। आसपास देखो तुम्हारे सारे दोस्त के हड्डियाँ। अब तुम्हारी बारी है।” यह बोलकर सारस एक बड़े से पत्थर पर आकर आ बैठा।
सारस की बात सुनकर केकड़ा बहुत गुस्सा हो गया और अपने आपको बचाने के लिए अपने दोनों हाथों से सारस का गला दबा दिया और कुछ देर बाद सारस मर गया। फिर केकड़ा अकेले झील वापस आ गया और बाकि मछलियों को सारस के चाल के बारे में बोला और कैसे उसने सारस को मार डाला यह भी बताया। सारे मछली बहुत खुश हुए और निश्चिंत होकर रहने लगे।
इस कहानी से सीख,
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हर काम सोच-समझकर करना चाहिए और किसी की बातों में नहीं आना चाहिए।
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