बहुत समय पहले की बात है. एक गाँव में एक ज्योतिषी रहा करता था. उसका विश्वास था कि वह तारों को देखकर भविष्य पढ़ सकता है. इसलिए वह सारी-सारी रात आसमान को ताकता रहता था. गाँव वालों के सामने भी वह अपनी इस विद्या के बारे में ढींगे हांका करता था.
एक शाम वह गाँव की कच्ची सड़क पर पैदल चलता हुआ अपने घर की ओर जा रहा है. उसकी नज़रें आसमान पर चमकते तारों पर जमी हुई थी. वह तारों को देखकर आने वाले समय में क्या छुपा है, यह पढ़ने की कोशिश कर रहा था. तभी अचानक उसका पैर कीचड़ से भरे एक गड्ढे पर पड़ा और वह गड्ढे में जा गिरा.
वह कीचड़ में लथपथ हो गया और किसी तरह गड्ढे से बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मारने लगा. लेकिन एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी वह गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाया. सारी कोशिश बेकार जाती देख वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा.
उसकी चिल्लाने की आवाज़ सुन कुछ लोग दौड़े चले आये. उन्होंने उसे गड्ढे में गिरे देखा, तो समझ गए कि आदतवश वह आसमान में तारों को देखकर भविष्य को समझने लगा हुआ होगा और सड़क का गड्ढा उसने नहीं देखा होगा.
उन्होंने उसे बाहर निकाला और बोले, “तुम आसमान में तारों को देखकर भविष्य पढ़ते रहते हो और तुम्हें यही नहीं पता कि तुम्हारे पैरों तले क्या है? भविष्य की तलाश में मत भटको, जो सामने है, उस पर ध्यान दो. भविष्य अपना ख्याल खुद ही रख लेगा.
सीख
हमारा आज ही कल अर्थात् भविष्य का निर्माण करता है. इसलिए भविष्य की चिंता छोड़कर आज पर ध्यान केंद्रित कर कर्म करो. आज मन लगाकर कर्म करोगे, तो ये कर्म स्वतः भविष्य का निर्माण कर लेंगे.
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