ख़रगोश और उसके कान

  ख़रगोश और उसके कान

बहुत समय पहले की बात है. एक जंगल में एक शक्तिशाली शेर रहा करता था. उसे भूख लगती, तो वह शिकार पर निकलता और जो जानवर उसके सामने पड़ जाता, उसका शिकार कर वह अपनी भूख मिटाता था. जंगल के सभी जानवर उससे डरते थे.

एक दिन शेर ने एक बकरी का शिकार किया. जब वह उसे खाने लगा, तो उसकी नुकीली सींगों से बुरी तरह घायल हो गया. उसे बहुत क्रोध आया और उसने तय किया कि जंगल में सींगों वाले जानवरों के लिए कोई जगह नहीं है. उसने पूरे जंगल में ये घोषणा करवा दी कि सींग वाले सभी जानवर जंगल छोड़कर चले जाए.

यह घोषणा सुनकर बेचारे सींग वाले जानवर क्या करते? सबमें शेर का भय था. इसलिए जंगल छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे. उस जंगल में एक ख़रगोश भी रहता था. जब उसने भी शेर की घोषणा सुनी, तो डर के मारे सारी रात सो नहीं पाया.

अगली सुबह सींग वाले सभी जानवर जंगल से जाने लगे. उनमें से कई ख़रगोश के मित्र भी थे. ख़रगोश आख़िरी बार अपने मित्रों से मिलने गया. जब वह उनसे मिलकर वापस लौटने लगा, तो उसे धूप में अपनी परछाई दिखाई पड़ी. परछाई में जब उसने अपनी लंबे कानों को देखा, तो डर गया.

उसने सोचा कि कहीं मेरे लंबे कानों को शेर सींग न समझ ले. यदि उसके ऐसा समझ लिया, तो फिर चाहे मैं उसे कितना ही क्यों न समझाऊं, वह मेरी बात नहीं मानेगा. बेमौत मरने से अच्छा है कि मैं भी जंगल छोड़कर चला जाऊं. उसके बाद बिना देर किये उसने भी जंगल छोड़ दिया.


सीख

समझदारी इसी में है कि अपने शत्रुओं को ऐसा कोई अवसर न दिया जाए कि वह आप पर या आपकी प्रतिष्ठा पर आघात कर सके.


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