चरवाहा बालक और भेड़िया

 चरवाहा बालक और भेड़िया 

एक गाँव में एक चरवाहा बालक रहता था. वह रोज़ अपनी भेड़ों को लेकर जंगल के पास स्थित घास के मैदानों में जाता.

वहाँ वह भेड़ों को चरने के छोड़ देता और ख़ुद एक पेड़ के नीचे बैठकर उन पर निगाह रखता. उसकी यही दिनचर्या थी.

दिन भर पेड़ के नीचे बैठे-बैठे उसका समय बड़ी मुश्किल से कटता था. उसे बोरियत महसूस होती थी. वह सोचता कि काश मेरे जीवन में भी कुछ मज़ा और रोमांच आ जाये.

एकदिन भेड़ों को चराते हुए उसे मज़ाक सूझा और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”

वहाँ से कुछ दूरी पर स्थित खेतों में कुछ किसान काम कर रहे थे. चरवाहे बालक की आवाज़ सुनकर वे अपना काम छोड़ उसकी सहायता के लिए दौड़े चले आये. लेकिन जैसे ही वे उसके पास पहुँचे, वह ठहाके मारकर हंसने लगा.

किसान बहुत गुस्सा हुए. उसे डांटा और चेतावनी दी कि आज के बाद ऐसा मज़ाक मत करना. फिर वे अपने-अपने खेतों में लौट गए

 चरवाहे बालक को गाँव के किसानों को भागते हुए अपने पास आता देखने में बड़ा मज़ा आया. उसके उनकी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन उसे फिर से मसखरी सूझी और वह फिर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”

खेत में काम कर रहे किसान अनहोनी की आशंका में फिर से दौड़े चले आये, जिन्हें देखकर चरवाहा बालक फिर  से जोर-जोर से हंसने लगा. किसानों ने उसे फिर से डांटा और चेतावनी दी. लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ. उसके बाद जब-तब वह किसानों को इसी तरह ‘भेड़िया आया भेड़िया आया’ कहकर बुलाता रहा. बालक के साथ कोई अनहोनी न हो जाये, ये सोचकर किसान भी आते रहे. लेकिन वे उसकी इस शरारत से बहुत परेशान होने लगे थे.

एक दिन चरवाहा बालक पेड़ की छाया में बैठकर बांसुरी बजा रहा था कि सच में एक भेड़िया वहाँ आ गया. वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”

लेकिन उसकी शरारतों से तंग आ चुके किसानों ने सोचा कि आज भी ये बालक उन्हें परेशान करने का प्रयास कर रहा है. इसलिए वे उसकी सहायता करने नहीं गए. भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया.

चरवाहा बालक दौड़ते हुए खेत में काम कर रहे किसानों के पास पहुँचा और रोने लगा, “आज सचमुच भेड़िया आया था. वह मेरी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया.”

किसान बोले, “तुम रोज़ हमारे साथ शरारत करते हो. हमें लगा कि आज भी तुम्हारा इरादा वही है. तुम हमारा भरोसा खो चुके थे. इसलिए हममें से कोई तुम्हारी मदद के लिए नहीं आया.”

चरवाहे बालक को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने प्रण लिया कि वह फिर कभी झूठ नहीं बोलेगा और दूसरों को परेशान नहीं करेगा.

सीख

बार-बार झूठ बोलने से लोगों के विश्वास पर चोट पहुँचती है और उनका विश्वास टूट जाता है. किसी का विश्वासपात्र बनना है, तो हमेशा सच्चाई के साथ रहिये. 

 


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