दो बकरियों की कहानी

 दो बकरियों की कहानी

नदी किनारे एक छोटा सा गाँव था. गाँव में रहने वाले लोगों ने नदी पार करने के लिए उस पर एक पुल बनाया हुआ था. लेकिन वह पुल इतना संकरा था कि एक बार में केवल एक ही व्यक्ति उसे पार कर सकता था.

एक दिन की बात है. एक बकरी नदी पर बने उस पुल को पार कर रही थी. पुल पर चलते-चलते उसने देखा कि एक दूसरी बकरी उसी पुल पर विपरीत दिशा से आ रही है. कुछ ही देर में दोनों पुल के बीचों-बीच पहुँच गई.

पुल को एक बार में केवल एक ही बकरी पार कर सकती थी. इसलिए दोनों बकरियाँ कुछ देर तक इंतज़ार करती रही कि सामने वाली बकरी पीछे हट जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दोनों में से कोई भी अपनी जगह से नहीं हिली, बल्कि अकड़कर खड़ी रही.

तब एक बकरी दूसरी बकरी से बोली, “तुम मुझे जाने का रास्ता दो, क्योंकि मैं तुमसे बड़ी हूँ.”

इस बात पर दूसरी बकरी हँस पड़ी और बोली, “होगी तुम मुझसे बड़ी, लेकिन मैं तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हूँ. मैं तुमसे जल्दी ये पुल पार कर लूंगी. इसलिए तुम मुझे रास्ता दो.”

पहली बकरी बोली, “मैं तुमसे बड़ी भी हूँ और ताकतवर भी. इसलिए हट जाओ.”

कुछ देर तक दोनों में इस बात पर बहस होती रही कि दोनों में कौन ज्यादा ताकतवर है. फिर बहस लड़ाई में बदल गई. दोनों अपनी सींगों से एक-दूसरे पर वार करने लगी. धीरे-धीरे उनकी लड़ाई बहुत बढ़ गई. परिणाम ये हुआ कि उनका संतुलन बिगड़ा और वे दोनों पुल से नीचे नदी में जा गिरी. नीचे नदी की तेज धार उनको बहा ले गई और अंततः दोनों मर गई.

कुछ देर बाद दो और बकरियाँ विपरीत दिशा से उस पुल पर चलते हुए आई और बहस करने लगी कि कौन पीछे हटेगी और कौन दूसरे को रास्ता देगी. इस बार एक बकरी ने समझदारी से काम लिया और कुछ देर सोचकर दूसरी बकरी से बोली, “ये पुल बहुत संकरा है. इसे एक बार में कोई एक ही पार कर सकता है. यदि हमने लड़ने की मूर्खता की, तो नदी में गिरकर अपनी जान गंवा देंगी. इसलिए ऐसा करते हैं कि मैं पुल पर लेट जाती हूँ. तुम मुझे लांघ कर दूसरी ओर चले जाना.”

दूसरी बकरी को भी ये बात समझदारी भरी लगी. उसने पहली बकरी की बात मान ली. पहली बकरी पुल पर लेट गई और दूसरी बकरी उसे लांघ कर दूसरी ओर चली गई. इस तरह दोनों ने पुल पार कर लिया.

सीख

१. गुस्सा और अहंकार बर्बादी की ओर ले जाता है.

२. वहीं समझदारी से काम लेने पर हर समस्या का समाधान निकल आता है..

 


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