भेड़िया और शेर की कहानी

 भेड़िया और शेर की कहानी

जंगल किनारे स्थित चारागाह में भेड़िये की कई दिनों से नज़र थी। वहाँ चरती भेड़ों को देखकर उसके मुँह से लार टपकने लगती और वह अवसर पाकर उन्हें चुराने की फ़िराक़ में था।

एक दिन उसे यह अवसर मिल ही गया। वह चुपचाप चारागाह में चरते एक मेमने को उठा लाया। खुशी-खुशी वह जंगल की ओर भागा जा रहा था और मेमने के स्वादिष्ट मांस के स्वाद की कल्पना कर रहा था।

तभी एक शेर उसके रास्ते में आ गया। शेर भी भोजन की तलाश में निकला था। भेड़िये को मेमना लेकर आता देख उसने उसका रास्ता रोका और इसके मुँह में दबा मेमना छीनकर जाने लगा।

भेड़िया पीछे से चिल्लाया, “ये तो गलत बात है। ये मेरा मेमना था। इसे तुम इस तरह छीन कर नहीं ले जा सकते।”

भेड़िये की बात सुनकर शेर पलटा और बोला, “तुम्हारा मेमना! क्यों क्या चरवाहे ने इसे तुम्हें उपहार में दिया था? तुम खुद इसे चरागाह से चुराकर लाये हो, तो इस पर अधिकार कैसे जता सकते हो? फिर भी यदि यह चारागाह से चुराने के बाद यह तुम्हारा मेमना बन गया था, तो तुमसे छीन लेने के बाद अब ये मेरा मेमना बन गया है। मुझसे छीन सकते हो, तो छीन लो।”

भेड़िया जानता था कि शेर से पंगा लेना जान से हाथ गंवाना हैं। इसलिए वह अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।

सीख

गलत तरीके से प्राप्त की गई वस्तु उसी तरीके से हाथ से निकल जाती है। 

 



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